मिस्र में कई प्रमुख क़ारी सामने आए हैं। मुहम्मद अब्दुलअज़ीज़ हस्सान, जो इन क़ारियों में से एक हैं, ने अपनी तिलावत में पुरानी और नई तरज़ौं को मिलाकर कुरान को पढ़ने की एक नई तर्ज़ का आविष्कार करने की कोशिश की है।
मोहम्मद अब्द अल-अज़ीज़ हस्सान ने 1964 में मिस्र के रेडियो में प्रवेश किया और 2003 तक जब उनका निधन हुआ, तब तक वे हमेशा पुख़तगी की बुलंदियों पर थे और उनकी सभी तिलावतें शानदार हैं।
उस्ताद हस्सान को प्रभावित करने वालों में से एक उस्ताद "मोहम्मद सलामा" थे। जब उस्ताद हस्सान ने मिस्र के "ग़रबिया" शहर में अपनी पहली तिलावत की, तो उस्ताद सलामा ने इस तिलावत को सुना और फिर कोशिश की कि हस्सान मिस्र के रेडियो में प्रवेश करें। एक अन्य बात यह है कि मिस्र के ग़रबिया में रहने वाले क़ारियों का तरीक़ा यह है कि वे ज्यादातर एक दूसरे की तरह तिलावत करते हैं। लेकिन हम यह कह सकते हैं कि "मंसूर बदार" या "अली महमूद" जैसे कुरान की तिलावतें हस्सान के करीब थीं।
इस के बावजूद, हस्सान एक बेमिसाल क़ारी हैं और महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक यह तै करना है कि हस्सान इस तर्ज़ तक कैसे पहुँचे। हस्सान की तिलावत की तर्ज़ ऐसी है जैसे उन्होंने पुरानी और नई तिलावत को मिला दिया हो; इसका मतलब यह है कि हम इन की तिलावतौं में मिस्र के पुराने और प्रथम श्रेणी के क़ारियों की झलक को भी देख सकते हैं और दूसरी तरफ इस में बहुत नयापन भी आ गया है।
इस के अलावा तिलावत में हस्सान के नाम पर एक तर्ज़ का नाम भी रखा गया है, जिसे हस्सानिया तर्ज़ कहा जाता है। इसलिए, हस्सान को एक खोजकर्ता क़ारी के रूप में जाना जाता है।
हस्सान का एक सामान्य और विशेष लहन है। मसलन, सूरह हूद की तिलावत में उन्होंने आम पसंद तिलावतें ज्यादा की हैं, लेकिन कुछ तिलावतों में उन्होंने खास और मुश्किल लहजे का भी इस्तेमाल किया है। इसलिए अगर कोई हस्सान की नकल करने जा रहा है, तो उसे इस फर्क़ पर ध्यान देना चाहिए ताकि सही लहन का इंतेखाब करके अपने मुखातब को खुश रखा जा सके।
उस्ताद हस्सान के पास लगभग 150 शानदार और बेहतरीन तिलावत हैं। इनमें से हम निम्नलिखित का उल्लेख कर सकते हैं:
सूरए मुज़मल, मुदस्सर और मुतफ़्फेफीन की तिलावत करना;
सूरए रहमान की तिलावत;
सूरए नज्म और क़मर की तीन तिलावतें;
सूरए असरा और नज्म की तिलावत;
सूरए इनसान और मुरसलात की तिलावत;
सूरए नमल की तिलावत;
सूरए क़ाफ़ और ज़ारियात तिलावत;