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तफ़्सीर और मुफ़स्सिर का परिचय/15

एक मुस्लिम फ़लसफ़ी द्वारा कुरान की तफ़सीर

15:15 - January 27, 2023
समाचार आईडी: 3478462
"तफ़सीर अल-क़ुरान अल-करीम" इस्लामी दुनिया के एक प्रसिद्ध फ़लसफ़ी और हिकमते मुतआलिया के संस्थापक मुल्ला सदरा द्वारा लिखी गई है। यह अरबी में पवित्र कुरान के कुछ सूरों की फ़लसफ़ी और इरफ़ानी तफ़्सीर है।

"तफ़सीर अल-क़ुरान अल-करीम" इस्लामी दुनिया के एक प्रसिद्ध फ़लसफ़ी और हिकमते मुतआलिया के संस्थापक मुल्ला सदरा द्वारा लिखी गई है। यह अरबी में पवित्र कुरान के कुछ सूरों की फ़लसफ़ी और इरफ़ानी तफ़्सीर है।

सदर अल-दीन मुहम्मद बिन इब्राहीम शीराज़ी (980-1045 AH) (1640-1571 AD), मुल्ला सदरा और सदरुल मुतअल्लेहीन के नाम से जाने जाते हैं, वह एक हकीम, एक आरिफ़, और ईरानी शिया फ़लसफ़ियों में से एक और एक फ़लसफ़े में "हिकमते मुतआलिया" के नाम से एक रुजहान के संस्थापक थे।

वह शीराज़, क़ज़वीन, इस्फ़हान और क़ुम सहित ईरानी शहरों में रहे और क़ुम शहर के पास कहक नामक गाँव में अपने जीवन के लगभग पाँच साल बिताए। उन्होंने "अल-असफ़ार अल-अरबअह" (द फोर जर्नीज़) पुस्तक में अपनी दार्शनिक प्रणाली को व्यक्त किया है। मुल्ला सदरा के पास विभिन्न विज्ञानों में विशेषज्ञता और कौशल था, लेकिन उन्होंने ज्यादातर दर्शन पर ध्यान केंद्रित किया।

उन्होंने "अल-असफ़ार अल-अरबअह" (द फोर जर्नीज़) पुस्तक में अपने फ़लसफ़ी निज़ाम को व्यक्त किया है। मुल्ला सदरा के पास विभिन्न विज्ञानों में विशेषज्ञता और कौशल था, लेकिन उन्होंने ज्यादातर फलसफे पर ध्यान केंद्रित किया। उनकी किताबों में "तफ़सीरे क़ुरान"  और "शर्हे उसूले काफ़ी" की ओर इशारा किया जा सकता है।

मुल्ला सदरा की तफ़्सीर का तरीक़ा

अपने समय की राइज तफ़्सीरों की जांच करके, सदर अल-मुतअल्लेहीन तफ़्सीर के चार तरीकों का उल्लेख करता है। वह इन तरीकों में से एक को "रासेख़ून फ़ी अल-इल्म का तरीक़ा" कहते हैं, जो कुरान को समझने में नबियों और शिया मुसलमानों के इमामों द्वारा उपयोग की जाने वाला एक तरीक़ा है। यह तरीक़ा उन लोगों के लिए ख़ास है जिन्हें अल्लाह ने हक़ीक़त, रुहानी मआनी, इरफ़ानी राज़ और वही की निशानियों की खोज के लिए चुना है।

किसी विशेष अर्थ या अल्लाह की निशानियों की खोज में वे उसके ज़ाहेरी अर्थ को कभी नष्ट नहीं करते और उसके आन्तरिक अर्थ को नष्ट नहीं करते। और उनका खोजा गया अर्थ ज़ाहेरी और लफ़्ज़ी अर्थ के विरुद्ध नहीं होता। क्योंकि ज़ाहेरी अर्थ कुरान के आंतरिक अर्थ को पहचानने और खोजने की शर्तें और निशानियां हैं। सदरुल मुतअल्लेहीन इन लोगों को, जिनमें वह खुद भी शामिल है, सच्चे आरिफ़ और सूफी मानते हैं।

सदरुल मुतअल्लेहीन इस तरीके को कुरान के इलाही और बातेनी राज़ों को समझने और महसूस करने का एकमात्र मुकम्मल तरीका मानते हैं, जिसे केवल शाब्दिक नियमों और अरबी ग्रामर के माध्यम से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। क्योंकि अगर ऐसा होता तो सभी अरबी दानों को कुरान को डीकोड करने में सक्षम होना चाहिए था। उनके अनुसार, केवल अक़ली और बौद्धिक जांच पड़ताल के नियमों के माध्यम से कुरान के बातेनी सत्य तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है। सदरुल मुतअल्लेहीन की राय में, तफ़्सीर का सबसे महत्वपूर्ण और इत्मीनान बख़्श तरीका, शोक़ व ज़ोक़ और दिल की गवाही का तरीक़ा है जिसे नुबूव्वत और विलायत के चराग़ से प्रकाश प्राप्त हुआ है। शोक़ व ज़ोक़ और दिल की गवाही  से मुराद ये है कि एक मुफ़स्सिर के पास आंतरिक पाकीज़गी और कुरान के अर्थों में ग़ौर के माध्यम से इरफ़ानी राज़ों को हासिल करे। वह मुकाश्फ़े (रहस्यमय) वाले विज्ञानों को सबसे क़ीमती और आला इल्म और ज्ञान मानते हैं, और इसे अंतिम और मतलूबा मक़्सद और खुशी  और सआदत का साधन भी मानता है, बल्कि इसी को खुशी और सआदत मानते हैं।

सदरा की तफ़्सीर की विशेषताएं

सदरुल मुतअल्लेहीन आमतौर पर अपनी तफ़सीर की शुरुआत में आयत की शाब्दिक चर्चा करते हैं। वह अक्सर कुरान के एक शब्द या जुमले के बारे में सर्फ़, नह्व और अरबी ग्रामर के विद्वानों की अलग-अलग और यहां तक ​​कि इख़्तिलाफ़ी राय की एक सूची प्रस्तुत करते हैं। और ये काम उनका उल्लंघन किए बिना करते हैं। कभी-कभी सदरुल मुतअल्लेहीन इस सीमा से भी आगे निकल जाते हैं और विभिन्न मतों के बीच एक प्रकार का इशतेराक और इत्तेहाद बनाने की कोशिश करते हैं या अरबी क़वाइद व ग्रामर के कुछ नियमों पर भरोसा करके उन मतों में से किसी एक की बरतरी दिखाने की कोशिश करते हैं।
 
वह कुरान की कूफ़ी और बसरी क़िराअत पर अधिक ध्यान देता है और नख़्ई, क़ोतादह, हसन बसरी और कसाई जैसे लोगों से बातों का हवाला देते हैं, और फिर इसके शाने नुज़ूल (आयत के नाज़िल होने का कारण) को बताता है। वह कुरान के कठिन शब्दों पर चर्चा करते हैं और अपने इरफ़ानी नज़रिए और तजरबे के आधार पर अपनी तफ़सीर प्रस्तुत करते हैं। सदरुल मुतअल्लेहीन कुरान की तफ़्सीर कुरान के जरिए करते हैं। दूसरी बात यह है कि वह मुतकल्लेमों, फ़लसफ़ियों और मुफ़स्सिरों में से सब की तफ़्सीर को अपनी तफ़्सीर के साथ व्यक्त करते हैं, चाहे वह उनसे सहमत हों या उनकी आलोचना करते हों।

सदरुल मुतअल्लेहीन की तफ़्सीर में, जो पाठक का ध्यान आकर्षित करता है वह कुरान में उनकी फ़लसफ़ी बारीकी है और उनका यह बयान है कि वे कहते हैं कि कुरान की इस या उस आयत का अर्थ मुझे इलाही इल्हाम से पता चला है और यह मुझ पर अर्शे ख़ुदा से प्रकट हुआ है।

मुल्ला सदरा की तफ़सीर को कुरान के सूरों की तरतीब से जिसे एक जिल्द में "तफ़सीरे मुल्ला सदरा" नाम से शेख अहमद शीराज़ी के प्रयासों से प्रकाशित किया गया है। ये किताब "अल-तफ़सीर अल-कबीर" और "तफ़सीर अल-कुरान अल-करीम" नामक सात खंडों में भी प्रकाशित हुई है। मुल्ला सदरा के तफ़्सीर के के कुछ सूरों का फ़ारसी में अनुवाद भी किया गया है। उनमें से, सूरह अल-वाक़ेआह, जुम्आ, तारिक़, अल-आला, ज़िलज़ाल और नूर की तफ़्सीर को मोहम्मद खाजवी ने चार खंडों में प्रकाशित किया है।

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